अश्कों के इस समन्दर से
इक ऐसा जाम बना साकी
याद रहे यही लम्हा बस
जहन में और कुछ न रहे बाकी
irfan ansari
Thursday 16 May 2019
Wednesday 15 May 2019
Tuesday 22 May 2018
Thursday 17 May 2018
रमजान मुबारक
दुनिया जिस भूख-प्यास से डरती है|
इस्लाम ने उसे "इबादत" बना दिया..!
यह इस बात की गवाही है कि जब आप दुनिया की सबसे ज़रूरी चीज़ भूख और प्यास से दूरी बना सकते है तो, बुरी आदतें, ग़ीबत, बेईमानी, मक्कारी, झूठ, फरेब और हर तरह के गुनाह से दूर होना कोई बड़ी बात नहीं! रमजान मुबारक दोस्तों
इस्लाम ने उसे "इबादत" बना दिया..!
यह इस बात की गवाही है कि जब आप दुनिया की सबसे ज़रूरी चीज़ भूख और प्यास से दूरी बना सकते है तो, बुरी आदतें, ग़ीबत, बेईमानी, मक्कारी, झूठ, फरेब और हर तरह के गुनाह से दूर होना कोई बड़ी बात नहीं! रमजान मुबारक दोस्तों
Saturday 28 April 2018
सोच
मेरी एक आदत है मै रोज रात को सोने से पहले ये दुआ करता हुं कि
ऐ खुदा दूनिया के सभी इंसानों की गलतीयों माफ कर ।
पर कुछ दिनों से ये दुआ मांगते वक्त मेरी जबान रूक जाती है और मेरा मन खुद से ये सवाल करता है कि खुदा क्यूं माफ करे उन्हें जो मासुमों पे कहर ढाते हैं ; जो मासुम बच्चीयों के साथ हैवानियत करते हैं। क्या मैं कभी माफ कर सकता हुं उन्हें...........
शायद ......
कभी..
कभी नहीं .....
अगर मैं माफ नहीं कर सकता उन्हें तो खुदा कैसे माफ करे । उसके तो उसकी बाग से सबसे खूबसूरत फुलों को मारा जा रहा है ।
यही सोच के मैं दुआ को थोड़ा बदल देता हूं कि...
ऐ खुदा सब को सोचने और बेबसों पे रहम करने वाला बना...........
.......आमीन..
ऐ खुदा दूनिया के सभी इंसानों की गलतीयों माफ कर ।
पर कुछ दिनों से ये दुआ मांगते वक्त मेरी जबान रूक जाती है और मेरा मन खुद से ये सवाल करता है कि खुदा क्यूं माफ करे उन्हें जो मासुमों पे कहर ढाते हैं ; जो मासुम बच्चीयों के साथ हैवानियत करते हैं। क्या मैं कभी माफ कर सकता हुं उन्हें...........
शायद ......
कभी..
कभी नहीं .....
अगर मैं माफ नहीं कर सकता उन्हें तो खुदा कैसे माफ करे । उसके तो उसकी बाग से सबसे खूबसूरत फुलों को मारा जा रहा है ।
यही सोच के मैं दुआ को थोड़ा बदल देता हूं कि...
ऐ खुदा सब को सोचने और बेबसों पे रहम करने वाला बना...........
.......आमीन..
Friday 20 April 2018
Friday 23 February 2018
मजहब और यारी
आखिर कौन सीखता हुई
है हम से
रात की निन्द खफा
हुई है हम से
हम तो अन्जान थे
मजहब के इन दिवारो से
हर खुशी मिलती थी
हमे बचपन के यारो से
मजहब ने हम मे ये
कौन सा रंग भर दिया है
उसे हिन्दू तो मुझे
मुस्लिम कर दिया है
एक जुनुन था कि
जिन्दगी के हर मुसकिल हालातो से
लड़ेंगे हम मिलकर
अपने मजबूत जज्बातों से
मजहब ने लाके खड़ा
किया है हमे ऐसे दोराहो पर
जैसे मोती बिखरे हो
सरेआम चौराहो पर
मोती की तरह ही हम
यूँहि लुटे जा रहे है
यारी ना होने से हर
जगह कुटे जा रहे है
जाने कबतक बाहर
निकलेंगे मजहब के इन दिवारो से
जाने कबअब गले
लगेंगे अपने जिगरी यारो से
मजहब ने हम को अलग
किया है मजहब ही हमे मिलायेगा
जब उसका मजहब उसको
मेरा मेरी समझ मे आयेगा
अबतक के हर लम्हो मे
उसका ही साथ रहा है
खुशीयों की हर बारिस
मे उसका ही हाथ रहा है
जिन्दगी ने हमारे
साथ ये कौनसा खेल खेला है
मै भी यहाँ अकेला हू सायद वो भी आज अकेला है
कबतक हम यूँ लगे
रहेंगे इन मजहबी उन्नमादों मे
कबतक हम यूँ याद
करेंगे एक दूसरे को यादों मे
चलो मिटा दें हम
कट्टरता को अपने अपने मजहब से
तु पूजा करे मै दूआ करूँ अपने अपने रब से
लग रहा है कट्टरता
की खता हुई है हमसे
इसीलिये रातों की
निंद खफा हुइ है हमसे
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